कविता | शीतल साठे
ए भगत सिंह तू जिन्दा है, हर एक लहू के कतरे में
हर एक लहू के कतरे में, हर इंकलाब के नारों में
तू ने तो तब ही बोला था, ये आजादी नहीं धोखा है
ये पूरी मुक्ति नहीं है यारों ये गोरों के संग सौदा है
इस झूठे जस्न के रौनक में, फ़से हुए किसानों में, रोये हुए जवानो में
ए भगत सिंह तू जिन्दा है, हर एक लहू के कतरे में
इतिहास में हम भूखे थे और आज भी ठोकर खाते है
जीस खादी पर रखा भरोसा आज भी धोखा देते है
कोई राम नाम बलिहार पुकारे कोई आज भी जाने लेते है
अब याद है भक्ता तेरी आती आग लगी है सीने में
अंधेरो का ये तख़्त हमें अब ताकत से ठुकराना है
हर साँस जहाँ लेगी उड़ान उस लाल सुबह को लाना है
शहीदो के राहों पर मर मिटने कि क्रांति कारी उम्मीदो में
ए भगत सिंह तू जिन्दा है , हर एक लहू के कतरे में
इंकलाब के नारों में, इंकलाब के नारों में , इंकलाब के नारों में




